शुक्रवार 24 अक्तूबर 2025 - 23:50
जलन एक ऐसी अख़लाक़ी बीमारी है जो इंसान के ईमान को खा जाती है: मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी

हौज़ा / मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी ने तारागढ़ अजमेर (भारत) में नमाज़े जुमा के ख़ुत्बों में नमाज़ियों को तक़्वा-ए-इलाही की नसीहत के बाद इमाम हसन अस्करी (अ) के वसीयत-नामा की तशरीह और तफ़्सीर के बयान में जलन के मोहलिक असरात पर रोशनी डालते हुए कहा कि हसद सिर्फ़ एक अख़लाक़ी बीमारी नहीं, बल्कि इंसान के ईमान को खा जाने वाला गुनाह है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम मौलाना सय्यद नक़ी महदी ज़ैदी ने तारागढ़ अजमेर (भारत) में नमाज़े जुमा के ख़ुत्बों में नमाज़ियों को तक़्वा-ए-इलाही की नसीहत के बाद इमाम हसन अस्करी (अ) के वसीयत-नामा की तशरीह में जलन के नुकसान और गुनाह की शिद्दत पर बयान करते हुए कहा कि जलन एक ऐसी बुराई है जो इंसान के ईमान को जला देती है।

उन्होंने कहा कि हज़रत इमाम अली रज़ा (अ) ने इरशाद फ़रमाया: ایَّاکُمْ وَ اَلْحِرْصَ وَ اَلْحَسَدَ فَإِنَّهُمَا أَهْلَکَا اَلْأُمَمَ اَلسَّالِفَةَ وَ إِیَّاکُمْ وَ اَلْبُخْلَ فَإِنَّهَا عَاهَةٌ لاَ تَکُونُ فِی حُرٍّ وَ لاَ مُؤْمِنٍ إِنَّهَا خِلاَفُ اَلْإِیمَانِ यानी लालच और हसद से बचो — क्योंकि इन्हीं दो सिफ़तों ने पिछली उम्मतों को तबाह किया; और कंजूसी से भी दूर रहो — क्योंकि कंजूसी एक बीमारी है जो किसी आज़ाद या सच्चे मोमिन में नहीं होती; यह ईमान के ख़िलाफ़ है।

मौलाना ज़ैदी ने कहा कि हसद वह बुराई है जो कायनात की शुरुआत से मौजूद है। इतिहास के अध्य्यन से हमें कुरआन में जलन की कई मिसालें मिलती हैं:

१. इब्लीस का इंसान से हसद:
आसमान में पहला गुनाह जो हुआ, वह हसद था — जब इब्लीस ने हज़रत आदम (अ.) से हसद किया। जब खुदा ने फ़रिश्तों को आदम (अ.) को सज्दा करने का हुक्म दिया, तो इब्लीस ने इंकार किया और कहा: "ایَّاکُمْ وَ اَلْحِرْصَ وَ اَلْحَسَدَ فَإِنَّهُمَا أَهْلَکَا اَلْأُمَمَ اَلسَّالِفَةَ وَ إِیَّاکُمْ وَ اَلْبُخْلَ فَإِنَّهَا عَاهَةٌ لاَ تَکُونُ فِی حُرٍّ وَ لاَ مُؤْمِنٍ إِنَّهَا خِلاَفُ اَلْإِیمَانِ — "मैं उससे बेहतर हूं, तूने मुझे आग से पैदा किया और उसे मिट्टी से।" इब्लीस ने सोचा कि जो दर्जा आदम (अ.) को मिला है, उसका हक़ तो मुझे था — मैं ऊँचे माद्दे से पैदा हुआ हूं, जबकि वह निचले माद्दे (मिट्टी) से। इस तकब्बुर और हसद के चलते उसने खुदा को चैलेंज कर दिया और कहा: "मैं तेरी इस मख़लूक़ को गुमराह कर दूँगा।" यही हसद पहला गुनाह था — जिसने इब्लीस को जन्नत से निकाल दिया। जो आज हसद करता है, वह उसी पहले शैतान के नक़्श-ए-कदम पर चलता है।

२. क़ाबील और हाबील का वाक़ेआ:
ज़मीन पर पहला गुनाह भी हसद की वजह से हुआ — जब क़ाबील ने अपने भाई हाबील को मार डाला। दोनों ने अल्लाह की बारगाह में क़ुर्बानी पेश की; हाबील की क़ुर्बानी कबूल हुई, जबकि क़ाबील की न हुई। दोनों ने क़ुर्बानियाँ मैदान में रखीं तो हाबील की क़ुर्बानी को आसमानी आग ने जला दिया जो कि क़बूलियत की निशानी थी, जबकि क़ाबील की क़ुर्बानी को आसमानी आग ने नहीं जलाया। इसी जलन में कि — "हाबील की क़ुर्बानी क्यों क़बूल हुई?" — क़ाबील ने हाबील को क़त्ल कर डाला, हालाँकि करने का काम यह था कि वह अपनी ग़लती सुधार लेता। सूरह माइदा में अल्लाह ने इस वाक़े का तफ़सीली ज़िक्र किया है: وَاتلُ عَلَيهِم نَبَأَ ابنَى ءادَمَ بِالحَقِّ إِذ قَرَّ‌با قُر‌بانًا فَتُقُبِّلَ مِن أَحَدِهِما وَلَم يُتَقَبَّل مِنَ الءاخَرِ‌ قالَ لَأَقتُلَنَّكَ ۖ قالَ إِنَّما يَتَقَبَّلُ اللَّهُ مِنَ المُتَّقينَ" और उन्हें आदम के दोनों बेटों का क़िस्सा सच्चाई के साथ सुना दो — जब दोनों ने क़ुर्बानी पेश की तो एक की क़बूल हुई और दूसरे की नहीं हुई। उस (क़ाबील) ने कहा, "मैं ज़रूर तुझे क़त्ल कर दूँगा।" इस पर हाबील ने कहा, "अल्लाह तो परहेज़गारों से ही क़ुबूल करता है।" क़ाबील को यह हसद महसूस हुआ कि हाबील का दर्जा और उसकी क़ुर्बानी बारगाहे इलाही में क़ुबूल होकर ऊँचा हो गया है। जबकि हाबील ने उसकी वजह भी बयान कर दी थी कि — "अल्लाह तो सिर्फ परहेज़गारों की क़ुर्बानी कबूल करता है।" हाबील की उम्दा क़ुर्बानी और उसकी खालिस नीयत ने उसे अल्लाह की बारगाह में क़ुर्ब (निकटता) और शरीफ़ दर्जा अता किया था। पीछे रह जाने और नाकामी के एहसास ने क़ाबील को हाबील के क़त्ल पर उकसाया, जबकि उसे अपनी ग़लती सुधारनी चाहिए थी। हसद की यह क़िस्म हमारे मौजूदा समाज में भी पाई जाती है — जहाँ अफ़राद किसी ताक़तवर या असरदार शख्सियत की नज़र में ऊँचा मक़ाम, क़ुरबत या शोहरत हासिल करने की कोशिश में रहते हैं। चाहे वह क्लासरूम हो, दफ़्तर हो, कोई इदारा (संस्था) हो या घर — ऐसे लोग क़ाबील की तरह अपने साथी को तरक़्क़ी करता देखकर खुद को नाकाम महसूस करते हैं और जलन में आकर उसे नुक़सान पहुँचाने की कोशिश करने लगते हैं।

३. भाईयों का यूसुफ़ (अ.) से हसद:
हज़रत यूसुफ़ (अ.) अपनी अख़लाक़ और अच्छे किरदार की वजह से अपने पिता याक़ूब (अ.) के महबूब थे। उनके भाइयों को यह पसंद नहीं आया और उन्होंने यूसुफ़ (अ.) को क़त्ल या कुएं में फेंक देने की साज़िश की।"اقتُلوا يوسُفَ أَوِ اطرَ‌حوهُ أَر‌ضًا يَخلُ لَكُم وَجهُ أَبيكُم وَتَكونوا مِن بَعدِهِ قَومًا صـٰلِحينَ"  यानी "यूसुफ़ को मार डालो या कहीं फेंक दो ताकि तुम्हारे बाप की तवज्जो सिर्फ़ तुम पर रहे।" मगर इस हसद के बावजूद अल्लाह ने यूसुफ़ (अ.) को नबी और बादशाह का मुकाम दिया — और भाइयों को कोई फ़ायदा न हुआ।

मौलाना नक़ी ज़ैदी ने कहा कि यहूद और नसारा का इस्लाम और मुसलमानों से हसद भी पुरानी और गहरी हकीकत है। यहूदियों को उम्मीद थी कि आख़िरी नबी उनकी नस्ल से होंगे, लेकिन जब अल्लाह ने अपनी हिकमत से नबी-ए-आख़िर (स) को बनी इस्माईल में माबूस किया, तो उन्होंने हसद में इंकार कर दिया। क़ुरआन कहता है: "وَإِذا خَلَوا عَضّوا عَلَيكُمُ الأَنامِلَ مِنَ الغَيظِ ۚ قُل موتوا بِغَيظِكُم" जब वे अकेले होते हैं, तो गुस्से में अपनी उंगलियाँ काटते हैं। उन्होंने नबी पर क़ातिलाना हमले किए, जादू किया, कुरआन से इंकार किया — सब कुछ हसद की वजह से।

आख़िर में, उन्होंने कहा कि मुश्रेकीन-ए-मक्का भी इसी हसद के मरीज थे। जब नबी करीम (स.) ने नबूवत का ऐलान किया, तो अबू जहल ने कहा: "हम और बनी अब्दे मुनाफ़ बराबर थे इज़्ज़त में — अब वे कहते हैं कि उनमें एक नबी है जिस पर आसमान से वह्यी आती है; हम कैसे मानें?"  बस इसी हसद ने उन्हें इस्लाम और मुसलमानों के दुश्मन बना दिया — और उन्होंने नबी के क़त्ल की साज़िशें रचाईं, मुसलमानों पर ज़ुल्म ढाए, क़ुरआन से इंकार किया और जंगें लड़ीं।

मौलाना ज़ैदी ने कहा: "हसद किसी और को नहीं, बल्कि ख़ुद इंसान को जला देता है। यह ईमान को खा जाता है और इंसान को इब्लीस व क़ाबील और अबू जहल के रास्ते पर ले जाता है। मोमिन को चाहिए कि वह हसद से दूर रहे और दूसरों की नेमत पर खुश होकर अल्लाह का शुक्र अदा करे।"

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